15th Finance Commission 2020 |15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट
भारतीय संविधान की संघीय व्यवस्था इसकी प्रमुख विशेषताओं में से एक है, जो केंद्र और राज्यों के बीच शक्ति तथा कार्यों के विभाजन की अनुमति देती है और इसी आधार पर कराधान की शक्तियों को भी केंद्र एवं राज्यों के बीच विभाजित किया जाता है। केंद्र और राज्यों के मध्य वित्त विभाजन को राजकोषीय संघवाद के रूप में भी परिभाषित किया जाता है तथा वित्त आयोग इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। ज्ञात हो कि भारतीय संविधान में इस बात की परिकल्पना की गई है कि वित्त आयोग देश के राजकोषीय संघवाद में संतुलन की भूमिका निभाएगा। हाल ही में 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) ने संसद के समक्ष अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसमें केंद्र और राज्यों के मध्य राजस्व के विभाजन का विस्तृत विश्लेषण कर विभिन्न सिफारिशें की गई हैं।
15वें वित्त आयोग(15th Finance Commission) की अंतरिम रिपोर्ट
- एन.के. सिंह की अध्यक्षता में गठित 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में कमोबेश पूर्ववर्ती आयोग (14वें वित्त आयोग) की सिफारिशों को संरक्षित रखा है। आयोग ने विभाजन योग्य राजस्व में वित्त वर्ष 2020-21 हेतु राज्यों के लिये 41 प्रतिशत हिस्सेदारी की सिफारिश की है, जो कि अब तक 42 प्रतिशत थी।
- वित्त आयोग के अनुसार, राज्यों की हिस्सेदारी में हो रही कटौती साधारणतया पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य के हिस्से के बराबर है, जो कि 0.85 प्रतिशत थी।
- केंद्र की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी का मुख्य कारण नवगठित केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) की सुरक्षा तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है।
- ज्ञात हो कि 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) के विचारार्थ विषयों में रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये केंद्र द्वारा की गई धन राशि की मांग पर विचार करना भी शामिल था। इस संदर्भ में आयोग विशेषज्ञों की एक समिति के गठन पर विचार कर रहा है।
- वित्त आयोग द्वारा यह कार्य विभाजन योग्य हिस्से की गणना से पूर्व सकल कर राजस्व से एक अलग कोष बनाकर किया जा सकता है, किंतु ऐसा करने से राज्यों के हिस्से के राजस्व में कमी हो सकती है।
अन्य सिफारिशें
- आयोग ने कुशल सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली का वैधानिक ढाँचा प्रदान करने के लिये कानून का मसौदा तैयार करने हेतु एक विशेषज्ञ समूह के गठन की सिफारिश की है। आयोग का मानना है कि हमें सरकार के सभी स्तरों पर बजट, लेखांकन और अंकेक्षण हेतु मानक प्रदान करने वाले एक वैधानिक राजकोषीय ढाँचे की आवश्यकता है।
- वित्त वर्ष 2018-19 में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त कुल राजस्व देश की GDP का लगभग 17.5 प्रतिशत था। आयोग का विचार है कि देश का वास्तविक कर राजस्व, अनुमानित कर राजस्व स्तर से काफी कम है। इसके अलावा 1990 के दशक की शुरुआत से अब तक भारत की कर क्षमता काफी हद तक अपरिवर्तित रही है। इस संदर्भ में आयोग ने 3 प्रमुख सिफारिशें दी हैं: (1) कर आधार को व्यापक बनाना (2) कर की दरों को सरल बनाना (3) सरकार के सभी स्तरों पर कर प्रशासन की क्षमता और विशेषज्ञता को बढ़ाना।
- वित्त आयोग ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये स्थानीय निकायों को अनुदान के रूप में 90,000 करोड़ रुपए देने की सिफारिश की है, जो कि अनुमानित विभाजन योग्य राजस्व का 4.31 प्रतिशत है।
- इसके अतिरिक्त आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) के क्रियान्वयन को लेकर रिफंड में देरी और पूर्वानुमान की अपेक्षा कर संग्रह में कमी जैसी कुछ चुनौतियों का भी उल्लेख किया है।
जनसंख्या के रूप में मापदंड की आलोचना
दक्षिणी राज्यों की सरकारों ने आयोग द्वारा उपयोग किये जाने वाले जनसंख्या मापदंड की आलोचना की है। 14वें वित्त आयोग ने राज्यों के हिस्से की गणना के लिये वर्ष 1971 और वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों का उपयोग किया था और 2011 की अपेक्षा 1971 के आँकड़ों को अधिक महत्त्व दिया था। 14वें वित्त आयोग के विपरीत 15वें वित्त आयोग ने सिर्फ वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों का प्रयोग किया है। आयोग ने तर्क दिया है कि मौजूदा राजकोषीय समीकरण को देखते हुए यह आवश्यक था कि नवीन जनगणना आँकड़ों का प्रयोग किया जाए। आलोचना करने वाले राज्यों का मानना है कि वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों के उपयोग से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसी बड़ी आबादी वाले राज्यों को ज़्यादा हिस्सा मिल जाएगा, जबकि कम प्रजनन दर वाले छोटे राज्यों के हिस्से में काफी कम राजस्व आएगा। हिंदी भाषी उत्तरी राज्यों (बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड) की संयुक्त जनसंख्या 47.8 करोड़ है, जो कि देश की कुल आबादी का 39.48 प्रतिशत है। इस क्षेत्र के करदाताओं की कर राजस्व में मात्र 13.89 प्रतिशत का योगदान है, जबकि उन्हें कुल राजस्व में से 45.17 प्रतिशत हिस्सा प्रदान किया जाता है। दूसरी ओर आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को कम आबादी के कारण कुल राजस्व में भी काफी कम हिस्सा मिलता है, जबकि देश की कुल राजस्व प्राप्ति में उनका योगदान काफी अधिक रहता है।
वित्त आयोग
- संविधान के अनुच्छेद 280 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या उससे पहले की अवधि में, जिसे राष्ट्रपति द्वारा आवश्यक समझा जाता है, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।
- इस व्यवस्था को देखते हुए पिछले वित्त आयोग के गठन की तारीख के पाँच वर्षों के भीतर अगले वित्त आयोग का गठन हो जाता है, जो एक अर्द्धन्यायिक एवं सलाहकारी निकाय है।
15वाँ वित्त आयोग (15th Finance Commission)
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2017 को 15वें वित्त आयोग के गठन को मंज़ूरी प्रदान की थी और 27 नवंबर, 2017 को एन.के. सिंह को 15वें वित्त आयोग (15th Finance Commission) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
- एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-14 तक बिहार से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
- 15वें वित्त आयोग का कार्यकाल वर्ष 2020-25 तक है।
वित्त आयोग की आवश्यकता क्यों?
- केंद्र कर राजस्व का अधिकांश हिस्सा एकत्र करता है और कुछ निश्चित करों के संग्रह के माध्यम से बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था में योगदान देता है।
- स्थानीय मुद्दों और ज़रूरतों को निकटता से जानने के कारण राज्यों की यह ज़िम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्रों में लोकहित का ध्यान रखें।
- हालाँकि इन सभी कारणों के चलते कभी-कभी राज्य का खर्च उनको प्राप्त होने वाले राजस्व से कहीं अधिक हो जाता है।
- इसके अलावा व्यापक क्षेत्रीय असमानताओं के कारण कुछ राज्य दूसरों की तुलना में पर्याप्त संसाधनों का लाभ उठाने में असमर्थ हैं। इन असंतुलनों को दूर करने के लिये वित्त आयोग राज्यों के साथ साझा किये जाने वाले केंद्रीय निधियों की सीमा निर्धारित करने की सिफारिश करता है।
वित्त आयोग के कार्य
- भारत के राष्ट्रपति को यह सिफारिश करना कि संघ एवं राज्यों के बीच करों की शुद्ध प्राप्तियों को कैसे वितरित किया जाए एवं राज्यों के बीच ऐसे आगमों का आवंटन कैसे किया जाए।
- यह निर्णय लेना कि अनुच्छेद 275 के तहत संचित निधि में से राज्यों को अनुदान/सहायता दिया जाना चाहिये या नहीं।
- राज्य वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर पंचायतों एवं नगरपालिकाओं के संसाधनों की आपूर्ति हेतु राज्य की संचित निधि में संवर्द्धन के लिये आवश्यक क़दमों की सिफारिश करना।
- राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त अन्य कोई विशिष्ट निर्देश, जो देश के सुदृढ़ वित्त के हित में हो।
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