Health Sector Infrastructure|स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढाँचा
किसी देश के स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढाँचा (Health Sector Infrastructure) उस देश की स्वास्थ्य नीति के आकलन का महत्त्वपूर्ण संकेतक होता है। विभिन्न विश्लेषकों ने बुनियादी ढाँचे को सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों के वितरण हेतु मूल आवश्यकता के रूप में वर्णित किया है। भारत दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देशों में से एक है और गरीबी के व्यापक प्रसार के कारण यह एक प्रमुख समस्या बनी हुई है। गरीबी, अत्यधिक जनसंख्या और जलवायु कारकों के कारण भारतीय रोगों के प्रति काफी सुभेद्य है। इसके बावजूद भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढाँचा (Health Sector Infrastructure) काफी दयनीय स्थिति में है और नई उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में तत्काल सुधारों की आवश्यकता है।
भारतीय स्वास्थ्य ( health sector) क्षेत्र का मौजूदा आकार
अनुमान के मुताबिक, भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र ( Health sector) वर्ष 2022 तक 3 गुना बढ़कर 133.44 बिलियन डॉलर हो जाएगा। इसके अलावा भारत का चिकित्सा पर्यटन क्षेत्र भी प्रत्येक वर्ष 18 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और वर्ष 2020 के अंत तक इसके 9 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
स्वास्थ्य क्षेत्र पर सरकार का व्यय वित्तीय वर्ष 2014-15 के 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2018-19 में 1.4 प्रतिशत हो गया है। भारत सरकार वर्ष 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च को GDP के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाने की योजना बना रही है।
औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2000 से जून 2019 के बीच अस्पतालों और डायग्नोस्टिक केंद्रों ने कुल 6.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया है।
स्वास्थ्य सुविधाओं संबंधी संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान के अनुसार, स्वास्थ्य राज्य सूची का विषय है, अर्थात् इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है।
- इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य से संबंधित अधिकांश प्रावधान संविधान के भाग- IV (राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत) में मौजूद हैं। इसमें संविधान का अनुच्छेद 38, 339(e), 41,42, 47 और 48A शामिल हैं।
- पंचायतों और नगरपालिकाओं में भी स्वास्थ्य से संबंधित कुछ प्रावधान हैं। इसमें पीने योग्य पानी, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास और सामाजिक कल्याण क्षेत्र शामिल हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) का उपयोग स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच की मांग के लिये बार-बार किया गया है।
भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र ( Health sector) संबंधी समस्याएँ
प्रशिक्षित डॉक्टरों की कमी
आँकड़ों के अनुसार, भारत के 1.3 बिलियन लोगों के लिये देश में सिर्फ 10 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं। इस हिसाब से भारत में प्रत्येक 13000 नागरिकों पर मात्र 1 डॉक्टर मौजूद है। उल्लेखनीय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस संदर्भ में 1:1000 अनुपात की सिफारिश की है, यानी देश में प्रत्येक 1000 नागरिकों पर 1 डॉक्टर होना अनिवार्य है। उचित अनुपात की प्राप्ति के लिये भारत को वर्तमान में मौजूदा डॉक्टरों की संख्या को दोगुना करना होगा।
झोला छाप संस्कृति
भारतीय चिकित्सा परिषद ने माना है कि झोला छाप डॉक्टरों (वे डॉक्टर जो न तो पंजीकृत हैं और न ही उनके पास उचित डिग्री है) की संस्कृति हमारी स्वास्थ्य प्रणाली के लिये काफी खतरनाक है। परिषद के आँकड़े बताते हैं कि देश भर में 50 प्रतिशत से अधिक डॉक्टर झोला छाप हैं। जहाँ एक ओर शहरी क्षेत्रों में 58 प्रतिशत योग्य चिकित्सक है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह आँकड़ा 19 प्रतिशत से भी कम है।
अस्पताल में बेडों की अपर्याप्त संख्या
भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढाँचे का विकास अधिकांश विकसित देशों की तुलना में बहुत कम और यहाँ तक कि वैश्विक औसत से भी काफी कम है। आँकड़ों के अनुसार, देश के अस्पतालों में उपलब्ध बेडों (Beds) का घनत्व प्रति 1,000 जनसंख्या पर 0.7 है, जो कि वैश्विक औसत 2.6 और WHO द्वारा निर्धारित 3.5 से काफी कम है।
निजी संस्थानों की महँगी शिक्षा
भारत में निजी संस्थानों की चिकित्सा शिक्षा की लागत काफी तेज़ी से बढ़ती जा रही है, वहीं सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में इतनी क्षमता नहीं है कि वे देश की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। निजी संस्थानों की अत्यधिक चिकित्सा शिक्षा लागत और सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में सीटों की कमी से देश में डॉक्टरों की कमी का संकट और गहराता जा रहा है।
कानूनों का अप्रभावी कार्यान्वयन
देश में एक ओर आधे से अधिक राज्यों में चिकित्सा सुरक्षा अधिनियम लागू हैं, परंतु इसके बावजूद समय-समय पर हिंसक घटनाएँ सामने आती रहती हैं। जानकारों के अनुसार, इसका मुख्य कारण यह है कि इन घटनाओं को रोकने के लिये जो नियम-कानून बनाए गए हैं उनका सही ढंग से कार्यान्वयन नहीं हो रहा है।
भारत में स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित पहलें
- वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) की शुरुआत की थी, जिसके तहत प्रत्येक माह की 9 तारीख को सभी गर्भवती महिलाओं को व्यापक और गुणवत्तायुक्त प्रसव पूर्व देखभाल प्रदान करना सुनिश्चित किया गया है।
- 25 दिसंबर, 2014 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘मिशन इन्द्रधनुष’ नाम से एक बूस्टर टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत की थी।
- दिसंबर 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देश भर में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने हेतु पोषण अभियान की शुरुआत की थी। अभियान का उद्देश्य परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण के माध्यम से देश भर के छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करना है।
- अगस्त 2018 में सरकार ने आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन को मंज़ूरी दी। इस योजना के तहत देश भर के 10 करोड़ से अधिक शहरी और ग्रामीण गरीब परिवारों को स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- 23 सितंबर, 2018 को सरकार ने प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) की शुरुआत की, जिसके तहत देश भर के 500 मिलियन गरीबों को 5 लाख रूपए प्रति परिवार का कैशलेस स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना है।
बजट और स्वास्थ्य क्षेत्र ( health sector)
- वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा है कि स्वास्थ्य क्षेत्र ( health sector) के लिये 69,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PMJAY) के लिये 6,400 करोड़ रुपए निर्धारित हैं। वित्त मंत्री के अनुसार प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत 20,000 से अधिक पैनलबद्ध अस्पताल हैं, फिर भी इस योजना के अंतर्गत स्तर-2 और स्तर-3 शहरों में गरीबों के लिये अधिक अस्पतालों की आवश्यकता है।
- इसके अलावा वित्त मंत्री ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से मेडिकल कॉलेजों को मौजूदा ज़िला अस्पतालों से संलग्न करने का प्रस्ताव भी किया है, ताकि देश में डॉक्टरों की कमी को दूर किया जा सके।
निष्कर्ष
भारत में नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करना नीति निर्माताओं के लिये सदैव ही प्राथमिक विषय रहा है, इसके बावजूद भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में संसाधनों की कमी, डॉक्टरों पर कार्य का अधिक बोझ और कानूनों का अप्रभावी कार्यान्वयन जैसी कई समस्याएँ विद्यमान हैं। यदि हम भारत को एक स्वस्थ राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं तो उपर्युक्त समस्याओं को दूर किया जाना आवश्यक है।
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