Indian Agricultural Sector|भारतीय कृषि क्षेत्र: समस्या और उपाय

प्रगति के सुनहरे अतीत पर खड़ा भारतीय कृषि क्षेत्र (Indian Agricultural Sector) देश की अर्थव्यवस्था में सदैव ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। भारत में विश्व का 10वाँ सबसे बड़ा कृषि योग्य भू-संसाधन मौजूद है। वर्ष 2011 की कृषि जनगणना के अनुसार, देश की कुल जनसंख्या का 61.5 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण भारत में निवास करता है और कृषि पर निर्भर है। उक्त तथ्य भारत में कृषि के महत्त्व को भलीभांति स्पष्ट करते हैं। वर्ष 2019 में देश के कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) में कई प्रकार के हस्तक्षेप और व्यवधान देखे गए। वर्ष 2019 के पहले हिस्से में 75000 करोड़ रुपए के रिकॉर्ड निवेश के साथ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना की शुरुआत की गई। हालाँकि वर्ष 2019 का दूसरा हिस्सा इस क्षेत्र के लिये आपदा के रूप में सामने आया और देश के कई हिस्सों में सूखे और बाढ़ की घटनाएँ देखी गईं। इसके अलावा आर्थिक मंदी और सब्जियों खासकर प्याज तथा दालों की कीमतों में वृद्धि ने उपभोक्ताओं (जिसमें किसान भी शामिल हैं) पर बोझ को और अधिक बढ़ा दिया। यह स्थिति मुख्यतः दो तथ्यों को स्पष्ट करती है:

  • लोकलुभावन उपायों और प्रयासों का अर्थव्यवस्था पर कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ रहा है और
  • जलवायु-प्रेरित आपदाओं की भेद्यता (Vulnerability) को कम करने के कई उपायों के बावजूद कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) और किसानों को नुकसान हो रहा है।


इस प्रकार कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है कि नीति निर्माण के समय अतीत के अनुभवों को ध्यान में रखा जाए और मौजूदा अवसरों का यथासंभव लाभ उठाया जाए।

भारत में कृषि की मौजूदा स्थिति

Agricultural

  • हाल ही में जारी आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारतीय आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अन्य क्षेत्रों की तुलना में रोज़गार अवसरों के लिये कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) पर अधिक निर्भर है।
  • आँकड़ों के मुताबिक देश में चालू कीमतों पर सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में कृषि एवं सहायक क्षेत्रों का हिस्सा वर्ष 2014-15 के 18.2 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2019-20 में 16.5 प्रतिशत हो गया है, जो कि विकास प्रक्रिया का स्वभाविक परिणाम है।
  • ज्ञात हो कि कृषि में मशीनीकरण का स्तर कम होने से कृषि उत्पादकता में कमी होती है। आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार भारत में कृषि का मशीनीकरण 40 प्रतिशत है, जो कि ब्राज़ील के 75 प्रतिशत तथा अमेरिका के 95 प्रतिशत से काफी कम है। इसके अलावा भारत में कृषि ऋण के क्षेत्रीय वितरण में भी असमानता विद्यमान है।
  • देश के लाखों ग्रामीण परिवारों के लिये पशुधन आय का दूसरा महत्त्वपूर्ण साधन है। किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। बीते 5 वर्षों के दौरान पशुधन क्षेत्र 7.9 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
  • कृषि उत्पादों के वैश्विक व्यापार में भारत अग्रणी स्थान पर है, किंतु विश्व कृषि व्यापार में भारत का योगदान मात्र 2.15 प्रतिशत ही है। भारतीय कृषि निर्यात के मुख्य भागीदारों में अमेरिका, सऊदी अरब, ईरान, नेपाल और बांग्लादेश शामिल हैं।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत से ही भारत कृषि उत्पादों के निर्यात को निरंतर बनाए हुए है।


कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) की चुनौती और समस्याएँ

  • पूर्व में कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) से संबंधित भारत की रणनीति मुख्य रूप से कृषि उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित रही है जिसके कारण किसानों की आय में बढ़ोतरी करने पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।
  • विगत पचास वर्षों के दौरान हरित क्रांति को अपनाए जाने के बाद, भारत का खाद्य उत्पादन 3.7 गुना बढ़ा है जबकि जनसंख्या में 2.55 गुना वृद्धि हुई है, किंतु किसानों की आय वृद्धि संबंधी आँकड़े अभी भी निराशाजनक हैं।
    • ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्‍य निर्धारित किया है, जो कि इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है किंतु यह लक्ष्य काफी चुनौतिपूर्ण माना जा रहा है।
  • लगातार बढ़ते जनसांख्यिकीय दबाव, कृषि में प्रच्छन्न रोज़गार और वैकल्पिक उपयोगों के लिये कृषि भूमि के रूपांतरण जैसे कारणों से औसत भूमि धारण (Land Holding) में भारी कमी देखी गई है। आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 1970-71 में औसत भूमि धारण 2.28 हेक्टेयर था जो वर्ष 1980-81 में घटकर 1.82 हेक्टेयर और वर्ष 1995-96 में 1.50 हेक्टेयर हो गया था।

Agricultural

  • उच्च फसल पैदावार प्राप्त करने और कृषि उत्पादन में निरंतर वृद्धि के लिये बीज एक महत्त्वपूर्ण और बुनियादी कारक है। अच्छी गुणवत्ता वाले बीजों का उत्पादन करना जितना महत्त्वपूर्ण है, उतना ही महत्त्वपूर्ण है उन बीजों का वितरण करना किंतु दुर्भाग्यवश देश के अधिकतर किसानों तक उच्च गुणवत्ता वाले बीज पहुँच ही नहीं पाते हैं।
  • भारत का कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) काफी हद तक मानसून पर निर्भर करता है, प्रत्येक वर्ष देश के करोड़ों किसान परिवार बारिश के लिये प्रार्थना करते हैं। प्रकृति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण कभी-कभी किसानों को नुकसान का भी सामना करना पड़ता है, यदि अत्यधिक बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुँचता है और यदि कम बारिश होती है तो भी फसलों को नुकसान पहुँचता है। इसके अतिरिक्त कृषि के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन भी एक प्रमुख समस्या के रूप में सामने आया है और उनकी मौसम के पैटर्न को परिवर्तन करने में भी भूमिका अदा की है।
  • आज़ादी के 7 दशकों बाद भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि विपणन व्यवस्था गंभीर हालत में है। यथोचित विपणन सुविधाओं के अभाव में किसानों को अपने खेत की उपज को बेचने के लिये स्थानीय व्यापारियों और मध्यस्थों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे उन्हें फसल का सही मूल्य प्राप्त हो पाता।


प्रभाव

  • देश के कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) में विद्यमान विभिन्न चुनौतियों और समस्याओं के परिणामस्वरूप किसान परिवारों की आय में कमी होती है और वे ऋण के बोझ तले दबते चले जाते हैं। अंततः उनके समक्ष आत्महत्या करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचता।
  • निम्न और अत्यधिक जोखिम वाली कृषि आय कृषकों की रुचि पर हानिकारक प्रभाव डालती है और वे खेती को छोड़ने के लिये मजबूर हो जाते हैं।
  • इससे देश में खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र के भविष्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।


उपाय

  • कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) समावेशी विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण खंड है और अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करता है, खासकर तब जब अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन न कर रही हो।
  • कृषि व्यय और विकास चालकों में असमानता के मुद्दे को संबोधित किया जाना चाहिये। पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र में उच्च विकास के बावजूद भी इन क्षेत्रों पर किये जाने वाला व्यय अपेक्षाकृत काफी कम है। अतः पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्र के योगदान को देखते हुए आवश्यक है कि इन क्षेत्रों पर होने वाले व्यय में वृद्धि की जाए।
  • कृषि में अनुसंधान और विकास पर खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 0.40 प्रतिशत से बढ़ाकर 1 प्रतिशत किया जाना चाहिये।
  • कृषि पर भारत की निर्भरता और जलवायु-प्रेरित आपदाओं को देखते हुए देशभर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ‘क्लाइमेट स्मार्ट विलेज’ (Climate Smart Villages) की अवधारण के कार्यान्वयन का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को भी प्रोत्साहन किया जाना चाहिये।
  • कृषि क्षेत्र ( Agricultural Sector ) से संबंधित आँकड़ों को एकत्र करने के लिये एक एजेंसी की स्थापना की जानी चाहिये। यह संस्था ​​लाभार्थियों की पहचान, सब्सिडी के बेहतर लक्ष्यीकरण और नीति निर्माण में सहायक हो सकती है।

You May Also Like latest Post कुशल कार्यान्वयन की चुनौती

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *