वैश्विक स्तर पर शिपिंग को विनियमित करने के उद्देश्य से गठित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) में भारत की नाममात्र की उपस्थिति और हस्तक्षेप भारत के समुद्री हितों को प्रभावित कर रहा है। यह स्थिति IMO द्वारा जहाज़ों के ईंधन के संबंध में लिये गए हालिया निर्णय से भी सुस्पष्ट हो जाती है। IMO द्वारा घोषित नए नियमों के अनुसार, सभी व्यापारिक जहाज़ 1 जनवरी, 2020 से 0.5 प्रतिशत से अधिक सल्फर सामग्री वाले ईंधन का प्रयोग नहीं कर सकेंगे। ज्ञात हो कि इससे पूर्व सल्फर सामग्री की यह सीमा 3.5 प्रतिशत तक थी। IMO के इस निर्णय का भारत जैसे विकासशील देशों पर काफी अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा। संगठन के इस निर्णय से ज़ाहिर तौर पर तेल की कीमतों में वृद्धि होगी और इसका प्रत्यक्ष प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। इसे देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन में अपनी भूमिका को और बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि भारत अपने हितों को ध्यान में रखकर संगठन के निर्णय को प्रभावित कर सके।
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ( International Maritime Organization-IMO) के नए निर्णय का प्रभाव
- इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ( International Maritime Organization-IMO) द्वारा जारी आधिकारिक सूचना के अनुसार, संगठन के इस निर्णय से जहाज़ों से उत्सर्जित होने वाले सल्फर ऑक्साइड (SOx) में 77 प्रतिशत की गिरावट आएगी।
- जहाज़ों से सल्फर ऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने से अम्लीय वर्षा और समुद्र के अम्लीकरण को रोकने में भी मदद मिलेगी।
- सल्फर ऑक्साइड के संबंध में यह नई सीमा जहाज़ों से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम हेतु अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (MARPOL) का हिस्सा है। ज्ञात हो कि MARPOL अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन के तत्त्वावधान में की गई एक प्रमुख पर्यावरण संधि है।
- यह निर्णय सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 14 – स्थायी सतत् विकास के लिये महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और उपयोग – के साथ मेल खाता है।
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निर्णय से संबंधित समस्याएँ
- विश्लेषकों के अनुसार, अतीत में ऐसा कई बार देखा गया है कि इस प्रकार के निर्णयों से कंपनियों को कई तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार के कई जहाज़ हैं जो कम सल्फर ऑक्साइड के साथ कार्य करने में समर्थ नहीं हैं, जिसके कारण कंपनियों को उन जहाज़ों की सेवाओं को बंद करना होगा। इसके अलावा नए नियमों से कई जहाज़ों की कार्यकुशलता में भी कमी आ सकती है।
- 0.5 प्रतिशत तक सल्फर सामग्री वाले ईंधन का उत्पादन अधिक महँगा होने के कारण जहाज़ों की परिचालन लागत भी बढ़ जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ( International Maritime Organization-IMO)
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 1948 में जिनेवा सम्मेलन के दौरान एक समझौते के माध्यम से की गई थी। IMO की पहली बैठक इसकी स्थापना के लगभग 10 वर्षों पश्चात् वर्ष 1959 में हुई थी।
- वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के कुल 174 सदस्य तथा 3 एसोसिएट सदस्य हैं और इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है।
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्राधिकरण है जो मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने और जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।
- शिपिंग वास्तव में एक अंतर्राष्ट्रीय उद्योग है और इसे केवल तभी प्रभावी रूप से संचालित किया जा सकता है जब नियमों और मानकों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया जाए।
- ध्यातव्य है कि IMO अपनी नीतियों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार नहीं है और न ही IMO के पास नीतियों के प्रवर्तन हेतु कोई तंत्र मौजूद है।
- इसका मुख्य कार्य शिपिंग उद्योग के लिये एक ऐसा नियामक ढाँचा तैयार करना है जो निष्पक्ष एवं प्रभावी हो तथा जिसे सार्वभौमिक रूप से अपनाया व लागू किया जा सके।
- नोट: भारत के लिये IMO के महत्त्व को समझने से पूर्व यह आवश्यक है कि हम संगठन की संरचना और कार्यप्रणाली को समझें।
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ( International Maritime Organization-IMO) की संरचना और कार्यप्रणाली
संगठन में एक सामान्य सभा, एक परिषद और पाँच मुख्य समितियाँ हैं। इसके अतिरिक्त प्रमुख समितियों के कार्य में सहयोग के लिये संगठन में कई उप-समितियाँ भी हैं।
सामान्य सभा
सामान्य सभा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ( International Maritime Organization-IMO) का सर्वोच्च शासनिक निकाय है। इसमें सभी सदस्य राष्ट्र शामिल होते हैं और प्रत्येक 2 वर्ष में एक बार सत्र का आयोजन किया जाता है, किंतु यदि आवश्यकता हो तो एक असाधारण सत्र भी आयोजित किया जा सकता है। सामान्य सभा मुख्य रूप से संगठन के कार्यक्रम को मंज़ूरी देने, बजट पर मतदान करने और संगठन की वित्तीय व्यवस्था का निर्धारण करने के लिये उत्तरदायी होती है। सामान्य सभा संगठन के परिषद का भी चुनाव करती है।
परिषद
परिषद को सामान्य सभा के प्रत्येक नियमित सत्र के पश्चात् दो वर्षों के लिये सामान्य सभा द्वारा ही चुना जाता है। परिषद IMO का कार्यकारी अंग है और संगठन के कार्य की देखरेख के लिये ज़िम्मेदार होती है। परिषद के कार्य:
- सामान्य सभा के दो सत्रों के मध्य परिषद सामान्य सभा के सभी कार्य करती है। हालाँकि सम्मेलन के अनुच्छेद 15(j) के तहत सामुद्रिक सुरक्षा और प्रदूषण रोकथाम पर सरकारों को सिफारिशें करने का कार्य सामान्य सभा के पास सुरक्षित रखा गया है।
- परिषद संगठन के विभिन्न अंगों की गतिविधियों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य भी करती है।
- सामान्य सभा की मंज़ूरी के साथ महासचिव की नियुक्ति का कार्य भी परिषद द्वारा ही किया जाता है।
- परिषद में कुल 40 सदस्य होते हैं, जिन्हें A, B तथा C श्रेणी में बाँटा जाता है।
समितियाँ
- समुद्री सुरक्षा समिति
- समुद्री पर्यावरण संरक्षण समिति
- कानूनी समिति
- तकनीकी सहयोग समिति
- सुविधा समिति
संगठन की ये समितियाँ मुख्य रूप से नीतियाँ बनाने और विकसित करने, उन्हें आगे बढ़ाने और नियमों तथा दिशा-निर्देशों को पूरा करने का कार्य करती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन और भारत
- भारत वर्ष 1959 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन ( International Maritime Organization-IMO) में शामिल हुआ था। वर्तमान में भारत संगठन की परिषद के सदस्यों की श्रेणी (B) में आता है।
- श्रेणी (A): इसमें वे देश शामिल हैं जिनका सबसे अधिक हित अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग सेवाओं से जुड़ा हुआ है। जैसे- चीन, इटली, जापान और नॉर्वे आदि।
- श्रेणी (B): इसमें वे देश शामिल हैं जिनका सबसे अधिक हित अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार से जुड़ा हुआ है। जैसे- भारत, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और ब्राज़ील आदि।
- श्रेणी (C): वे देश जिनका समुद्री व्यापार और नेवीगेशन से विशेष हित जुड़ा हुआ है। जैसे- बेल्जियम, चिली, साइप्रस और डेनमार्क आदि।
- अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने के लिये IMO में भारत की भागीदारी उल्लेखनीय रूप से अपर्याप्त रही है। लंदन स्थित IMO के मुख्यालय में भारत का स्थायी प्रतिनिधि पद बीते 25 वर्षों से रिक्त है।
- भारत के विपरीत विकसित राष्ट्रों का अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन में वर्चस्व देखा जाता है। अधिकतर यूरोपीय देश अपने समुद्री हितों की रक्षा करने के लिये अपने प्रस्तावों को एकसमान रूप से आगे बढ़ाते हैं। वहीं लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रों ने अपने हितों को बढ़ावा देने के लिये लंदन स्थित IMO के मुख्यालय में अपना स्थायी प्रतिनिधि नियुक्त किया है।
- IMO ने समुद्री डाकुओं की उपस्थिति के आधार पर हिंद महासागर में ‘उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों’ (High Risk Areas) का सीमांकन किया है। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल की मौजूदगी के बावजूद अरब सागर और भारत के लगभग पूरे दक्षिण-पश्चिमी तट को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है।
आगे की राह
- वैश्विक समुद्री व्यापार में भारत के हितों के मद्देनज़र यह स्पष्ट है कि भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन में अपनी भागीदारी को बढ़ाने की आवश्यकता है।
- कम-से-कम समय में भारत को IMO के मुख्यालय में भारत का स्थायी प्रतिनिधि पद भरने का प्रयास करना चाहिये।
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