भूमि अधिग्रहण और अनुच्छेद 300A |Land Acquisition and Article 300A
भूमि अधिग्रहण और अनुच्छेद 300A (Land Acquisition and Article 300A)
संदर्भ
हाल ही में भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि “राज्य द्वारा उचित न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना नागरिकों को उनकी निजी संपत्ति से ज़बरन वंचित करना मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300A (Article 300A) के तहत प्राप्त संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन होगा।” सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक, कानून से शासित किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य कानून की अनुमति के बिना नागरिकों से उनकी संपत्ति नही छीन सकता। न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून से संचालित कल्याणकारी सरकार होने के नाते सरकार संवैधानिक सीमा से परे नहीं जा सकती।
विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार व अन्य’ मामला:
- हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 1967-68 में सड़क निर्माण के दौरान विद्या देवी नामक एक निरक्षर महिला की ज़मीन बिना उसकी अनुमति के अधिगृहीत कर ली गई थी।
- सर्वोच्च न्यायलय ने ‘विद्या देवी बनाम हिमाचल प्रदेश सरकार व अन्य’ मामले पर सुनवाई करते हुए विवादित ज़मीन पर पूर्ण स्वामित्व के लिये हिमाचल प्रदेश सरकार के कब्ज़े (Adverse Possession) के तर्क को नकार दिया।
- साथ ही न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 136 और अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह महिला को 8 सप्ताह के भीतर मुआवज़ा और अन्य कानूनी लाभ प्रदान करे।
भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) क्या है?
भूमि अधिग्रहण से आशय (भूमि खरीद की) उस प्रक्रिया से है, जिसके तहत केंद्र या राज्य सरकार सार्वजनिक हित से प्रेरित होकर क्षेत्र के बुनियादी विकास, औद्योगीकरण या अन्य गतिविधियों के लिये नियमानुसार नागरिकों की निजी संपत्ति का अधिग्रहण करती हैं। इसके साथ ही इस प्रक्रिया में प्रभावित लोगों को उनके भूमि के मूल्य के साथ उनके पुनर्वास के लिये मुआवज़ा प्रदान किया जाता है।
भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) कानून की आवश्यकता क्यों?
देश के विकास के लिये जहाँ औद्योगीकरण जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देना ज़रूरी है, वहीं सरकार के लिये यह भी सुनिश्चित करना अतिआवश्यक है कि विकास की इस प्रक्रिया में समाज के कमज़ोर वर्ग के हितों को क्षति न पहुँचे। भू-अधिग्रहण प्रक्रिया में सरकार एक मध्यस्थ की भूमिकायें निम्नलिखित कार्य करती है-
- सरकार यह सुनिश्चित करती है कि परियोजना हेतु आवश्यक भूमि की व्यवस्था हो सके। यदि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र या कंपनियों के लिये भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) में कानूनों का उपयोग नहीं करती है तो प्रत्येक भू-मालिक अपनी भूमि के लिये मनमानी कीमत मांग सकता है या ज़मीन बेचने से मना भी कर सकता है जिससे परियोजना को पूरा करने में काफी समय लगेगा या परियोजना रद्द भी हो सकती है।
- निर्धारित नियमों का पालन करते हुए सरकार भू-मालिकों को भूमि का उचित मूल्य प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती है तथा परियोजना से प्रभावित लोगों के पुनर्वास में भी सहायता करती है (भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013)। निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के मामले में सरकार के हस्तक्षेप से यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि कंपनी द्वारा ज़मीन बेचने के लिये भू-मालिकों के शोषण न हो।
भूमि अधिग्रहण के लिये कानूनी प्रावधान:
ब्रिटिश शासन के दौरान ऐसे अनेक प्रावधान बनाए गए जिनके माध्यम से ब्रिटिश सरकार आसानी से भू-मालिकों की ज़मीन बिना उनकी अनुमति के ले सकती थी।
भारत में कई अन्य महत्त्वपूर्ण कानूनों की तरह ही लंबे समय तक (भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 (land acquisition act 2013) लागू होने से पहले तक) भूमि अधिग्रहण के लिये ब्रिटिश शासन के दौरान बने भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 (Land Aquisition Act 1894) का अनुसरण किया गया।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 (Land Aquisition Act 1894)
इस अधिनियम के तहत कुछ सामान्य प्रक्रियाओं का पालन कर सरकार आसानी से किसी भी भूमि का अधिग्रहण कर सकती थी। भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 (Land Aquisition Act 1894 )के अनुसार, भूमि अधिग्रहण की कुछ महत्त्वपूर्ण अनिवार्यताएँ निम्नलिखित हैं-
- भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य (Public Purpose) के लिये किया गया हो।
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) के लिये भू-मालिक को उचित मुआवज़ा दिया गया हो।
- अधिग्रहण के लिये अधिनियम में निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया हो।
भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की प्रक्रिया:
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की प्रक्रिया में राज्य अथवा केंद्र सरकार के निर्देश पर एक ‘भूमि अधिग्रहण अधिकारी’ (जिला अधिकारी या कलेक्टर) की नियुक्ति की जाती है।
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) अधिकारी के नेतृत्व में प्रस्तावित भूमि का निरीक्षण कर अधिनियम के अनुच्छेद 4 के तहत आधिकारिक गज़ट, स्थानीय समाचार-पत्रों व अन्य माध्यमों से इस संबंध में अधिसूचना जारी की जाती है।
- अधिनियम के अनुच्छेद-5(a) के अनुसार, अधिसूचना जारी होने के पश्चात् कोई भी व्यक्ति प्रस्तावित भूमि पर मुआवज़े अथवा अन्य किसी विवाद के संबंध में आवेदन कर सकता है।
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) अधिकारी द्वारा मुआवज़े व अन्य विवादों से संबंधित सभी मामलों का निपटारा एक वर्ष के अंदर करना अनिवार्य है।
- इस प्रक्रिया के अगले चरण के तहत सरकार की अनुमति के आधार पर अधिकारियों अथवा कंपनी द्वारा प्रस्तावित क्षेत्र पर बाड़ (Fencing) लगाने का कार्य किया जा सकता है।
- प्रक्रिया के अंतिम चरण के रूप में एक बार पुनः सभी विवादों का निपटारा कर भूमि को परियोजना के लिये सौंप दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त अधिनियम में अपवाद के रूप में कुछ ‘इमरजेंसी क्लॉज़ (Emergency Clause)’ को चिन्हित किया गया था। जिनका उपयोग कर सरकार पूरी तरह से अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किये बिना भी भूमि अधिग्रहण कर सकती थी।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम-1894 (Land Aquisition Act 1894) की कमियाँ:
- भूमि पर निर्भर लोगों के हितों की क्षति: इस अधिनियम में सिर्फ भू-मालिकों के लिये मुआवज़े की व्यवस्था की गई। संबंधित भूमि पर निर्भर श्रमिकों व अन्य सेवा प्रदाताओं के हितों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और न ही उनके पुनर्वास के लिये कोई प्रावधान किये गए। विधि आयोग ने वर्ष 1954 की रिपोर्ट में इस समस्या को रेखांकित किया था।
- सार्वजनिक उद्देश्य (Public Purpose) की अस्पष्ट व्याख्या: अधिनियम में सार्वजनिक उद्देश्य की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं की गई, जिसके कारण कई मामलों में इस कानून का दुरुपयोग किया गया।
- बाज़ार मूल्य से कम मुआवज़ा: यद्यपि अधिनियम में भूमि के बाज़ार मूल्य के आधार पर मुआवज़ा दिये जाने का प्रावधान था परंतु भूमि का मूल्य निर्धारित करने की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं की गई थी। इस अधिनियम का उपयोग करते हुए भू-स्वामियों को बाज़ार मूल्य से कम कीमत पर भूमि अधिकार छोड़ने पर विवश किया गया।
- ‘इमरजेंसी क्लॉज़ (Emergency Clause)’ का दुरुपयोग: किसानों और अनेक सामाजिक कार्यकर्त्ताओं द्वारा इस अधिनियम के विरोध का मुख्य कारण अधिनियम में शामिल ‘इमरजेंसी क्लॉज़ (Emergency Clause) का दुरुपयोग था। अनेक मौकों पर सरकारों ने इस व्यवस्था का उपयोग कर भू-मालिकों से ज़बरन उनकी भूमि का अधिकार छीन लिया।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 (Land Aquisition Act 2013):
- इस अधिनियम को “भूमि अर्जन, पुनरुद्धार, पुनर्वासन में उचित प्रतिकार तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013” (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) नाम से भी जाना जाता है।
- सार्वजनिक उद्देश्य (Public Purpose) की स्पष्ट व्याख्या: भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 (Land Aquisition Act 1894) में सरकार के लिये सार्वजनिक उद्देश्य की स्पष्ट व्याख्या की गई, जिससे इस संदर्भ में किसी भी प्रकार के भ्रम की स्थिति को दूर कर कानून के दुरुपयोग को कम किया जा सके।
- सहमति की अनिवार्यता: इस अधिनियम के माध्यम से भू-मालिकों के हितों की रक्षा के लिये यह प्रावधान किया गया कि भूमि अधिग्रहण में निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिये कम-से-कम 80% और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership- PPP) परियोजना में भूमि अधिग्रहण के लिये कम-से-कम 70% भू-मालिकों की सहमति को अनिवार्य कर दिया गया।
- मुआवज़ा और पुनर्वास: अधिनियम में ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के अधिग्रहण के लिये बाज़ार मूल्य का चार गुना तथा शहरी क्षेत्र में बाज़ार मूल्य से दोगुनी कीमत अदा करने की व्यवस्था की गई। साथ ही अधिनियम के अनुसार, यदि 1 वर्ष के अंदर लाभार्थियों को मुआवज़े की राशि नहीं प्रदान की जाती है तो अधिग्रहण की प्रक्रिया रद्द हो जाएगी (धारा 25)। इसके साथ ही भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) से प्रभावित अन्य लोगों जैसे- कृषि मजदूर, व्यापारी आदि के पुनर्वास के लिये उपयुक्त मदद प्रदान करने की व्यवस्था की गई है (धारा 31)।
- विवाद निवारण तंत्र: अधिनियम के अनुसार, भूमि अधिग्रहण से संबंधित विवादों के समाधान के लिये अधिनियम की धारा 15 के तहत कलेक्टर द्वारा सभी विवादों का निपटारा एक निर्धारित समय सीमा के अंदर किया जाएगा। भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की अधिसूचना जारी होने के 60 दिनों के अंदर कोई भी व्यक्ति किसी आपत्ति अथवा विवाद के संदर्भ में संबंधित कलेक्टर को लिखित शिकायत दे सकता है।
- भूमि अधिग्रहण की सीमा: भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बहु-फसलीय कृषि भूमि के अधिग्रहण को प्रोत्साहित नहीं करता है। इस अधिनियम के अनुसार,बहु-फसलीय कृषि भूमि का अधिग्रहण केवल विशेष परिस्थितियों में और एक सीमा तक ही किया जा सकता है। (धारा 10)
- आपातकालीन परिस्थितियों में: अधिनियम में आपात की परिस्थितियों (जैसे-राष्ट्रीय सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा आदि) में सरकार को भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) करने के लिये विशेष अधिकार प्रदान किये गए हैं, जिसके अनुसार आपात की स्थिति में सरकार संसद की मंज़ूरी से आवश्यकतानुसार भूमि अधिग्रहण कर सकती है। (धारा 40)
- भूमि उपयोग की समय-सीमा: भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 में भू-मालिकों के प्रति सरकार के उत्तरदायित्व को निर्धारित करने और अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने के लिये भूमि के उपयोग के संबंध में समय-सीमा का निर्धारण किया गया है। अधिनियम के अनुसार, यदि भूमि के अधिग्रहण के बाद 5 वर्षों के अंदर सरकार या संबंधित कंपनी द्वारा उसका उपयोग नहीं किया जाता है। तो उसका अधिकार भू-मालिक को पुनः वापस कर दिया जाएगा। इसके साथ ही यदि पुराने अधिनियम के अनुसार, अधिगृहीत भूमि पर 5 वर्षों तक कार्य नहीं शुरू होता है, तो भूमि के पुनः अधिग्रहण के लिये नए अधिनियम के अनुसार मुआवज़ा देना होगा। (भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013, भाग-4, धारा-24)
चुनौतियाँ :
आज भी भारतीय कामगारों में एक बड़ी संख्या उन अकुशल लोगों (मज़दूरों) की है जो असंगठित क्षेत्र में शामिल हैं और कृषि, कुटीर उद्योग आदि से अपना जीवन-यापन करते हैं। भूमि-अधिग्रहण से ऐसे लोगों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की प्रक्रिया बहुत ही जटिल एवं लंबी है, ऐसे में इस प्रक्रिया के पूर्ण होने और प्रभावित लोगों को मुआवजा प्राप्त करने तक उन्हें अपने जीवन-यापन के लिये अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- भूमि से संबंधित लोग अधिकांशतः कम पढ़े-लिखे या किसी अन्य कारोबार से परिचित नहीं होते हैं अतः मुआवज़ा प्राप्त होने के बाद भी उनके लिये पुनः नया उद्यम शुरू करना एक चुनौती होता है।
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) के अधिकांश मामलों में भू-मालिक को ही मुआवज़ा प्रदान किया जाता है परंतु भूमि पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर अन्य लोग जैसे- मज़दूर, कलाकार,स्थानीय व्यापारी आदि को उपयुक्त सहायता नहीं मिल पाती है।
- किसी क्षेत्र के औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप क्षेत्र में बड़े व्यापारियों के आगमन से स्थानीय व्यापारियों के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाती है।
उद्योगों के लिये चुनौतियाँ:
विशेषज्ञों के अनुसार, भूमि अधिग्रहण के लिये वर्ष 1894 का अधिनियम जहाँ सरकार और निजी संस्थाओं को अधिक शक्ति प्रदान करता था, वहीं भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के लागू होने से उद्योगों के लिये भूमि का अधिग्रहण करना बहुत ही जटिल हो गया है और साथ ही भूमि का मूल्य बढ़ने से इसके प्रत्यक्ष प्रभाव बाजार और औद्योगिक इकाइयों पर देखा गया है। विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2019 में जारी ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस इंडेक्स’ (Ease of Doing Buisness Index) में भारत 190 देशों में 63वें स्थान पर रहा।
निष्कर्ष: भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) मामले में सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला किसानों और भूमि पर निर्भर अन्य लोगों के लिये एक बड़ी जीत है। न्यायालय ने अपने फैसले के माध्यम से न सिर्फ न्यायपालिका के प्रति जनता के विश्वास को मजबूत किया है बल्कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधनों को लेकर हालिया गतिविधियों के संदर्भ में विधायिका को भी एक महत्त्वपूर्ण संदेश दिया है। अतः सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ध्यान में रखते हुए भविष्य में ऐसी नीतियों का निर्माण करना चाहिए जिससे आर्थिक विकास और कृषि के बीच के संतुलन को बनाया रखा जा सके।
आगे की राह:
भूमि-अधिग्रहण (Land Acquisition) की प्रक्रिया देश की प्राकृतिक संपदा और औद्योगिक विकास से बीच एक महत्त्वपूर्ण एवं संवेदनशील विषय है। अतः भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) में प्रकृति, भूमि पर निर्भर लोगों और औद्योगिक विकास के बीच संतुलन बनाए रखना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। भूमि अधिग्रहण में होने वाली समस्याओं से निपटने के लिये निम्नलिखित प्रयास किये जा सकते हैं-
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) के पश्चात् किसान अथवा भू-मालिक के सफल पुनर्वास के लिये भूमि से जुड़े आर्थिक और भावनात्मक पक्ष को ध्यान में रखकर उचित मुआवज़ा सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- भूमि अधिनियम (Land Acquisition) की प्रक्रिया में पारदर्शिता और उचित कानूनी प्रक्रिया के पालन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) के दौरान भूमि पर निर्भर अन्य लोगों और क्षेत्र के विकास पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन कर इस संदर्भ में आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
- भूमि के अधिग्रहण (Land Acquisition) में भू-मालिकों के हितों के साथ-साथ औद्योगिक वर्ग के हितों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है, जिससे इस क्षेत्र में स्थानीय तथा विदेशी निवेश को बढ़ाया जा सके।
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